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कहते हैं महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के दिन व्रत रखने वाली महिलाओं और लड़कियों की सभी इच्छाएं पूरी होती है। आपने अब तक महाशिवरात्रि (Mahashivratri) पर शिवजी की पूजा और अभिषेक होता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने वाले हैं जहां महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के दिन शिवलिंग (Shivling) और गुरु शुक्राचार्य (Guru Shukracharya) दोनों का जलाभिषेक होता है। सरस्वती किनारे (Saraswati River) गांव सतौड़ा (Village Satoda) स्थित उष्णेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग और गुरु शुक्राचार्य की समाधि पर जलाभिषेक करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। इससे कुछ दूरी पर ओषनश तीर्थ है। इसको गोपाल मोचन (Gopal Mochan) के नाम से भी जानते हैं।
मान्यता है कि मंदिर में शिवलिंग के साथ ही गुरु शुक्राचार्य का सिर गिरा था, जबकि उनका धड़ जंगल में गिरा था। मंदिर परिवार में उनकी समाधी बनाई गई है। शिवलिंग के साथ समाधी पर भी जलाभिषेक करने की मान्यता है। अब मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।
उन्होंने मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी। इसके साथ ही गुरु शुक्राचार्य की समाधी बनाई गई है। तब से यहां शिवलिंग के साथ समाधी पर जलाभिषेक कर पूजा की जाती है। यहां लगातार पांच त्रयोदशी जलाभिषेक करने से मनोकामना पूर्ण हाेती है।
900 की आबादी में से 450 लोग विदेश गए
मंदिर कमेटी के सचिव विक्रमजीत सिंह ने बताया कि गांव की आबादी करीब 900 है। गांव में करीब 170 परिवार हैं। अधिकतर लोग खेती बाड़ी करते हैं। आज गांव के 450 लोग विदेश में हैं। इनमें से कुछ वहीं रह रहे हैं, जबकि छह महीने या एक साल में गांव आते हैं। युवाओं की पहली पसंद अमेरिका (America), कनाड़ा (Canada), जर्मनी (Germany) और इटली (Italy) है।
सरतौड़ा से बना सतौड़ा
महंत दीपक गिरी ने बताया कि सतौड़ा गांव का पुराना नाम सरतौड़ा है। यह गुरु शुक्राचार्य की तपोस्थली है। बताया जा रहा है कि आसपास के लोग बाहर गए हुए थे। पीछे से गांव पर हमला बोल दिया गया। गुरु शुक्राचार्य ने उनका सामने किया, लेकिन तलवार के हमले से उनका सिर मंदिर स्थल के पास आकर गिरा, जबकि धड़ जंगल में गिरा। ग्रामीण वापस आए तो सब कुछ तहस नहस था। दोनों जगह उनकी समाधी बनाकर पूजा की जाने लगी। इसके गांव का नाम सतौड़ा रखा।
मंदिर के साथ गिरा था सिर, जंगल में धड़
महंत दीपक गिरी महाराज ने बताया कि गांव में स्थित उष्णेश्वर महादेव मंदिर की पुरानी मान्यता है। बताया जा रहा है कि गुरु शुक्राचार्य ने यहां मृत संजीवनी मंत्र की प्राप्ति की थी। तब से उनकी तपोस्थली है। मंदिर के किनारे ओषनेश तमीर्थ है। बाद में इसका नाम गोपाल मोचन भी पड़ा। बताया जा रहा है कि बाद में शुक्राचार्य का वध कर दिया गया। उनका सिर मंदिर के साथ और धड़ जंगल में जा गिरा था।
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